Narayan Bali Shradh

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Chand Chaura Murcha Gali Ainadai Thakurbari Bikanery Marwary Bhojnalay Mishra Market, Gaya - Bihar (India)

विष्णुपद पूजा

विष्णुपद पूजा


          श्री विष्णुपादो विजयते ।। - गया तीर्थ व विष्णुपाद मंदिर की ऐतिहासिक पौरणिक कथा
          अंतः सलिला फल्गु महानदी के तट पर बसा हुआ अति रमणीय, सर्वथा कल्याणकारी मोक्षदायनी पितृ मोक्ष तीर्थ गया जी के नाम से विश्वविख्यात है। 
          फल्गु नदी के पश्चिम तट के दक्षिण मध्य में भगवान विष्णु नारायण का मंदिर (वेदी) है। गर्भगृह में श्री विष्णुपाद की चरण प्रतिष्ठा है। फल्गु महानदी के पश्चिम किनारे पर बसा हुआ यह विशाल अति प्राचीन और परम पावन मंदिर पितरों के श्राद्ध का केंद्र रहा है।
           श्राद्ध कर्म की परंपरा हमारे सनातन भारतीय संस्कृति में अति प्राचीन है। जिसमे श्रेष्ठ जन धर्म का अनुपालन करते है और परम्परा के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते है। शास्त्रों के वचनानुसार यह परम्परा जितनी पुरानी है,
            उतनी पुरानी गया जी व गया जी स्थित इस मंदिर (वेदी) का इतिहास।


          इस मंदिर का इतिहास जानने के लिये आपको ऐतिहासिक पौराणिक गयासुर राक्षस की कथा को जानना व समझना अत्यंत आवश्यक है ।

          गयासुर किस प्रकार उत्पन हुआ ?
          गयासुर का स्वरूप औऱ प्रभाव क्या था ?
          उसने किस प्रकार की तपस्या से शारीरिक पवित्रता प्राप्त की ?
          भगवान विष्णु के नाभिकमल से ब्रह्मा जी उत्पन हुए और उन्होंने सृष्टि की रचना की। उन्होंने आसुर भाव से असुर की तथा उदारभाव से देवताओं की उत्पत्ति की थी। 
          उन असुरों में महाबलवान, पराक्रमी गयासुर हुआ। वह विशालकाय था शास्त्रों के मतानुसार इसका शरीर सवा सौ योजनों का था, मोटाई साठ सहस्त्र योजनों की थी। वह भगवान विष्णु का परम भक्त था।
           कोलाहल पर्वत के सुन्दर गिरी स्थान पर उसने दारूण तपस्या की थी। उसने अनेक सहस्त्र वर्षो तक अपने साँसे रोक स्थित रहा उसके दारूण तपस्या को देख देवगण बहुत संतप्त औऱ क्षुब्ध हुए, अतः देवगणों ने ब्रह्मा जी के पास जाकर निवेदन किया कि गयासुर से हमलोगों की रक्षा कीजिये, 
           देवताओं की आर्तवाणी सुनकर ब्रह्मा जी ने सभी देवों से श्री महादेव के पास चलने को कहा - ब्रह्मा जी सहित सभी देव कैलाश महादेव के पास पहुँचे व महादेव से रक्षा हेतु प्रार्थना की तब महादेव ने सबों को श्रीहरि विष्णु जी के पास चलने को कहा सभी क्षीर सागर पहुचे भगवान विष्णु की स्तुति कर प्रार्थना की और रक्षा हेतु निवेदन किया, 
           श्री हरि ने आश्वासन दिया और सभी देवगण ब्रह्मा विष्णु महेश समेत गयासुर के पास पहुच गयासुर से कहा - गयासुर तुम यह तपस्या का कारण क्या है हम सन्तुष्ठ है अपनी इच्छा व्यक्त करो, गयासुर सभी देवताओं को अपने समक्ष देख प्रार्थना की औऱ कहा कि अगर आप सन्तुष्ट है तो मेरी यह कामना है कि द्विजातियों, यज्ञों, तीर्थो, पर्वर्तीय प्रांतो से भी यह मेरा शरीर पवित्र हो जाए, तब श्रीहरि समेत सभी देवताओं ने कहा कि तुम अपनी इच्छा के अनुरूप ही पवित्रता का लाभ करो। गयासुर के इस अद्भुत कार्य से तीनों लोक व यमपुरी सुनी हो गई। पुनः देवगणों की व्याकुलता बढ़ी गई, और सभी वासुदेव के पास पहुँचे औऱ कहा - तीनो लोक सुना हो गया है तब वासुदेव ने कहा - आप लोग गयासुर का शरीर पर यज्ञ करने हेतु गयासुर से निवेदन करे, गयासुर के पास पहुच सभी देवों ने ऐसी ही इच्छा प्रकट की तब गयासुर ने कहा - हे देव देवेश यदि आप हमारे शरीर पर यज्ञ करेगे तो हमारा पितृ कुल कृत्य कृत्य हो जाएगा। आपने ही तो इतनी अपूर्व पवित्रता की प्रदान की है। यह यज्ञ अवश्य सम्पन होगा ।

          गयासुर के शरीर पर यज्ञ प्रारम्भ हुआ, ब्राह्मणों को दक्षिणा देकर यज्ञ संम्पन्न किया गया फिर सभी ने देखा कि यज्ञ भूमि यानी गयासुर का शरीर चलायमान हो रहा है 
          तब ब्रह्मा जी धर्मराज को आदेश किया कि आपके यमपुरी में जो धर्मशीला है लाओ औऱ गयासुर के सिर पर स्थापित करो धर्मराज ने ऐसा ही किया परन्तु वह असुर शिला समेत विचलित हो गया, 
          तब ब्रह्मा जी ने श्री विष्णु की प्रार्थना की और सारी घटनाए व्यक्त की। तब श्री हरि विष्णु गयासुर के मस्तक पर रखी शिला के उपर स्वमेव भगवान जनार्दन, पुंडरीकाक्ष गदाधर के रूप में अवस्थित हो 
          गये तब गयासुर स्थिर हुआ और कहा - क्या मैं भगवान विष्णु के वचन मात्र से निश्चल न हो जाता मैं भगवान विष्णु के गदा द्वारा पीड़ित हो चुका हूं आप देव प्रसन्न रहे, 
          गयासुर के इन बातों से सब देव प्रसन्न हुए औऱ कहा - इच्छा अनरूप वर मांग लो तब गयासुर ने कहा - जब तक पृथ्वी का अस्तित्व है मेरे इस शरीर पर ब्रह्मा विष्णु महेश का निवास स्थान बना रहे, 
          इस क्षेत्र की प्रतिस्ठा मेरे नाम से हो, गया क्षेत्र की मर्यादा पांच कोश की व गयासिर की मर्यादा एक कोश की हो इन दोनों के मध्य मानव हितकारी समस्त तीर्थो का निवास हो इस बीच मे स्नानदिकर तर्पण, 
          पिंडदान करने से महान फल प्राप्ति हो, इस क्षेत्र में पिंडदान करने वाले मनुष्यो सहस्त्र कुलों का उद्धार हो, आप लोग व्यक्त, अव्यक्त रूप धारण कर इस शिला पर विरजमान रहे ऐसा वरदान आप लोग हमें प्रदान करें। 
          देवताओं ने ऐसा ही वर दिया और अपने निज स्थान को प्रस्थान हुए। तब से गया श्राद्ध श्रेष्ठभूमि है और विष्णुपाद चिन्ह अवस्थित है ऐसा अन्यत्र कोई तीर्थ नही ।

        

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