Narayan Bali Shradh
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पितृ दोष निवारण पूजा
बहुत जिज्ञासा होती है आखिर ये पितृदोष है क्या? पितृ - दोष शांति के सरल उपाय क्या है? आपकी जिज्ञासा को शांत करने हेतु यह आलेख प्रस्तुत किया है । हमारे जन्म के साथ ही हमारे ऊपर तीन ऋण होते हैं -
देव ऋण
पितृ ऋण
ऋषि ऋण
पितृ गण हमारे पूर्वज हैं जिनके हम सदैव ऋण होते है, क्योंकि हमारे जीवन में उनके किये गए अनेकों उपकार होते है। अतः पितृऋण से मुक्त होने के लिये सदैव प्रयासरत होना आवश्यक है। मनुष्य लोक से ऊपर पितृ लोक है, पितृ लोक के ऊपर सूर्य लोक है एवं इस से भी ऊपर स्वर्ग लोक है।
आत्मा जब अपने शरीर को त्याग कर सबसे पहले ऊपर उठती है तो वह पितृ लोक में जाती है, वहाँ हमारे पूर्वज मिलते हैं अगर उस मृत के अच्छे पुण्य हैं तो ये हमारे पूर्वज भी उसको प्रणाम कर अपने को धन्य मानते हैं की इस अमुक पुत्र पौत्र ने हमारे कुल में जन्म लेकर हमें धन्य किया इसके आगे वे अपने पुण्य के आधार पर सूर्य लोक की तरफ बढती है।
बहुत कम ही ऐसे जीव आत्मा होते है जो अपने पुण्य के प्रभाव से स्वर्ग की यात्रा करते है या परमात्मा में समाहित होते है जिसे दोबारा जन्म नहीं लेना पड़ता। मनुष्य लोक एवं पितृ लोक में बहुत सारी जीव आत्माएं पुनः अपनी इच्छा वश, मोह वश अपने कुल में जन्म लेती हैं।
पितृ दोष क्या होता है? हमारे ये ही पूर्वज सूक्ष्म व्यापक शरीर से अपने परिवार को जब देखते हैं, और महसूस करते हैं कि हमारे परिवार के लोग ना तो हमारे प्रति श्रद्धा रखते हैं और न ही इनमें कोई भाव या स्नेह है और ना ही किसी भी शुभ अवसर पर ये हमको याद करते हैं,
ना ही अपने ऋण चुकाने का प्रयास ही करते हैं, और ना ही दान -पुण्य, तिलतर्पण, ब्राह्मण भोजन तो ये आत्माएं दुखी होकर अपने वंशजों को श्राप दे देती हैं, जिसे "पितृ- दोष" कहा जाता है।
पितृ दोष एक अदृश्य बाधा है। ये बाधा पितरों के रुष्ट होने के कारण होती है पितरों के रुष्ट होने के बहुत से कारण हो सकते हैं, हमारे आचरण से, किसी परिजन द्वारा की गयी गलती से, श्राद्ध आदि कर्म ना करने से, अंत्येष्टि कर्म आदि में हुई किसी त्रुटि के कारण भी हो सकता है।
इसके लक्षण मानसिक अवसाद, व्यापार में वृद्धि न होना, परिश्रम के अनुसार फल न मिलना, वैवाहिक जीवन में समस्याएं या संक्षिप्त में कहें तो जीवन के हर क्षेत्र में व्यक्ति और उसके परिवार को बाधाओं का सामना करना पड़ता है। पितृ दोष होने पर अनुकूल ग्रहों की स्थिति, गोचर, दशाएं होने पर भी शुभ फल नहीं मिल पाते, कितनी भी पाठ, देव अर्चना की जाए, उसका शुभ फल नहीं मिल पाता। पितृ दोष दो प्रकार से प्रभावित करता है -
अधोगति वाले पितरों के कारण
उर्ध्वगति वाले पितरों के कारण
अधोगति वाले पितरों के दोषों का मुख्य कारण परिजनों द्वारा किया गया गलत आचरण, अतृप्त इच्छाएं, सम्पति के प्रति मोह और उसका गलत लोगों द्वारा उपभोग होने पर,
विवाह आदि में परिजनों द्वारा गलत निर्णय। परिवार के किसी प्रियजन को अकारण कष्ट देने पर पितर क्रुद्ध हो जाते हैं, परिवार जनों को श्राप दे देते हैं और अपनी शक्ति से नकारात्मक फल प्रदान करते हैं।
उर्ध्व गति वाले पितर सामान्यतः पितृदोष उत्पन्न नहीं करते, परन्तु उनका किसी भी रूप में अपमान होने पर अथवा परिवार के पारंपरिक रीति-रिवाजों का उचित निर्वहन नहीं करने पर वह पितृदोष उत्पन्न करते हैं।
इनके द्वारा उत्पन्न पितृदोष से व्यक्ति की भौतिक एवं आध्यात्मिक उन्नति बाधित हो जाती है, फिर चाहे कितने भी प्रयास क्यों ना किये जाएँ, कितने भी पूजा पाठ क्यों ना किये जाएँ, उनका कोई भी कार्य ये पितृ सफल नहीं होने देते।
पितृ दोष निवारण के लिए सबसे पहले यह जानना ज़रूरी होता है कि किस गृह के कारण और किस प्रकार का पितृ दोष उत्पन्न हो रहा है ? जन्म पत्रिका और पितृ दोष जन्म पत्रिका में लग्न, पंचम, अष्टम और द्वादश भाव से पितृदोष का विचार किया जाता है।
पितृ दोष में ग्रहों में मुख्य रूप से सूर्य, चन्द्रमा, गुरु, शनि, और राहू - केतु की स्थितियों से पितृ दोष का विचार किया जाता है। इनमें से भी गुरु, शनि और राहु की भूमिका प्रत्येक पितृ दोष में महत्वपूर्ण होती है इनमें सूर्य से पिता या पितामह, चन्द्रमा से माता या मातामह, मंगल से भ्राता या भगिनी और शुक्र से पत्नी का विचार किया जाता है।
अधिकाँश लोगों की जन्म पत्रिका में मुख्य रूप से क्योंकि गुरु, शनि और राहु से पीड़ित होने पर ही पितृ दोष उत्पन्न होता है।
पितृ दोष निवारण के उपाय -
पितृ गायत्री का नित्य जप
अमावस्या पर पितरों को तिलापर्ण, ब्राम्हण भोजन कराना
श्राद्ध पक्ष पर नित्य श्राद्ध करना